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जालोर के सुराणा गांव की घटना से मन बहुत व्यथित है। नन्हे से इंद्र की मौत पर किसी पत्थर को भी रोना आ जाए फिर इंसान की क्य

जालोर के सुराणा गांव की घटना से मन बहुत व्यथित है। नन्हे से इंद्र की मौत पर किसी पत्थर को भी रोना आ जाए फिर इंसान की क्या बात है। पर उसके बाद जिस तरह एक बालक की मौत की आड़ में राजनीति की गई है वो इस देश के लिए बहुत घातक है।
घटना के एक घंटे के भीतर ही शिक्षक को गिरफ्तार कर लिया गया,शिक्षक ने माना भी कि दो बच्चे झगड़ रहे थे दोनों को ही थप्पड़ मारे थे। अगर थप्पड़ से ही मौत होती तो आज हम में से कोई जिंदा नही होता, क्योंकि ऐसा कोई नही जिसने स्कूल में थप्पड़ न खाई हो। और बाद में जैसा रिपोर्ट्स में खुलासा हुआ कि बच्चे का पिछले पांच साल से इलाज चल रहा था,कान में बीमारी थी, तो इस हालत में छैल सिंह की जगह बच्चे के पिता भी गलती से मार देते तो मृत्यु हो जाती। अब छैल सिंह का दुर्भाग्य रहा कि उसका थप्पड़ मारना हुआ और बच्चे की मौत हो गई। छैल सिंह ने इलाज के पैसे भी दिए पर ईश्वर को कुछ और मंजूर था। इलाज के दौरान भी इंद्र के पिता व शिक्षक के बीच बातचीत लगातर होती है, जहाँ कहीं छुआछूत या मटकी की बात नहीं है।

पर उसकी मृत्यु के बाद लाशों पर राजनीति करने वाले सक्रिय होते है और इस केस में मटकी को घुसाते है। FIR दर्ज होती है कि इंद्र ने छैल सिंह की मटकी से पानी पीया इसलिए उसे इतना पीटा की मौत हो गई। आंख का अंधा व्यक्ति भी इस बात को समझेगा कि जिस स्कूल का मालिक एक भोमिया राजपूत और जीनगर हो, जिस स्कूल के आधे से अधिक शिक्षक अनुसूचित जाति से हो,छोटे से मकान में चल रहे जिस स्कूल में सब लोग साथ खाना खाते हो,जिस स्कूल में अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों 15 सालों से पढ़ रहे हो...वहाँ छुआछूत नही हो सकता। कौन व्यक्ति अपने पेट पर लात मारना चाहेगा, अगर स्कूल में छुआछूत हो तो कौन अपने बच्चे निजी स्कूल में फीस देकर भेजेगा ? ये सामान्य समझ की बात है जिसे सब जानते हुए भी मानते नही है। हाँ ये अलग विषय है कि समाज मे अस्पृश्यता पूरी तरह समाप्त हुई या नहीं। आज भी भेद है समाज में और यहाँ तक की अनुसूचित जातियों के अंदर आपस मे बहुत भेद है। ये सब समाप्त होना ही चाहिए।

मीडिया हमेशा की तरह अपनी TRP व समाजो को आपस मे लड़ाने के अपने मूलभूत कार्य मे मुस्तेदी से लगा। दैनिक भास्कर ने ऐसी हैडिंग लगाकर मुखपृष्ठ पर खबर छापी कि पूरे प्रदेश में हाहाकार मच गया। फिर राजस्थान पत्रिका या अन्य कोई अखबार अवसर से न चुका। जज बनकर इन्होंने अपराध घोषित कर दिया। बिना जांच के लिख दिया कि मटकी से पानी पीने के कारण दलित बालक की हत्या। फिर तीन दिन बाद सब जगह आग लगने के बाद लिखते है कि स्कूल में मटकी थी ही नही सब एक ही टँकी से पानी पीते है। अब क्या हो, आग तो लग चुकी। इनका एजेंडा पूरा हुआ।

नेता भला ऐसा अवसर क्यों जाने देते। इनका तो मूल काम ही लाशों पर राजनीति करना है। पूरी की पूरी सरकार सुराणा आ गई। पूरा प्रयास किया कि मामला शांत न होने पाए, जातियों के मध्य ऐसी आग रोज थोड़े ही लगती है। इसलिये इस आग को जलाए रखे। सच जानने के बाद भी जहर बुझे बयान दिए गए, पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाया गया।
पुलिस कह रही है अनुसंधान में मटकी नही मिली, जिला कलेक्टर कह रहे है मटकी वाली बात नही है, विद्यालय के विद्यार्थी व शिक्षक कह रहे है मटकी नही है न कोई विद्यार्थियों में जाति के आधार पर भेद है।

सोशल मीडिया के तो कहने ही क्या पटना और बाड़मेर के वीडियो को इंद्र का वीडियो बताकर 2 लाख बार शेयर कर दिया। बुद्धिजीवियों ने भी जातीय दबाव में खूब कलम घिसी।जिनसे उम्मीद थी कि ये संवाद करेंगे,सच जानेंगे उन्होंने भी निराश ही किया।

आज तक जहाँ कहीं राजपूतों द्वारा कुछ गलत हुआ सबसे पहले हमने स्वयं ही विरोध किया है, जातिवाद न हमने कभी किया था न हमे आज भी करना आता है। कही किसी राजपूत ने दलित को घोड़ी से उतारा हमने निंदा की, कहीं गांव में समाधियों पर बच्चों ने किसी के उकसाने पर डंडे मारे हमने विरोध किया, इस घटना में भी सबसे पहले व सबसे ज्यादा विरोध करने वाले राजपूत नेता ही मिलेंगे। मौत मौत में हमने कभी अंतर नही किया। कभी सेलेक्टिव नही हुए।
हीरक जयंती में लाखों की भीड़ में अपने ही लोगो को नसीहत देना बहुत बड़ी बात होती है, उसके बाद आगे बढ़कर हमने दलित दूल्हों को घोड़ी पर चढ़ाया, हाथी पर बैठाया, हरिजन कन्याओं की अपने घर मे शादी करवाई..दलित चिंतकों के साथ बैठके करी, अब भी लगातार सभी के साथ संवाद जारी है ताकि हम एक दूसरे को बेहतर समझे और कहीं कुछ अप्रिय घटित हो तो सही समझ के साथ सौहार्द कायम रखने में सहयोगी बने। इतने प्रयासों के बाद भी इतने बड़े देश मे इतने बड़े समाज मे कहीं कोई घटना होती है और पूरे के पूरे समाज को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है,पूर्व मे किये गए सभी प्रयासों को भूला दिया जाता है। और जब ऐसा किया जाता है तब अपने ही लोगो के उलाहने सुनने के बाद भी संवाद करने वाले लोगो के दिल पर क्या गुजरती है इसका अंदाज़ा कोई नही लगा सकता। पर फिर भी ये प्रयास अनवरत जारी रहेंगे क्योंकि हम जानते है सत्य की राह मुश्किल ही होती है।

ये बात अब इस देश मे बिल्कुल साफ है कि यहाँ मौत मौत में फर्क किया जाता है। मरने और मारने वाली की जाति देखकर प्रतिक्रिया की जाती है। एक लाश में नेताओ को वोटों की खेंप, बुद्धिजीवियों को नोटों के बंडल तो मीडिया को TRP नज़र आती है। अभी कुछ दिनों पहले नागौर में एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति की हत्या नागौर की दबंग जाति के अधिकारियों ने कर दी, कोई नेता नहीं बोला,मीडिया नहीं बोला। डांगावास जैसा जघन्य कांड हुआ, ट्रैक्टरों से कुचल कुचलकर अनुसूचित जाति के लोगो को मार डाला कोई नेता नहीं बोला, मीडिया नही बोला। ये फेहरिस्त लंबी है...और इसके उलट अगर अपराधी के नाम के पीछे सिंह लगा है तो सब टूट के पड़ते है...क्या ये न्याय है, क्या है समानता है...

इसी घटनाक्रम में एक राजपूत पुलिस कॉन्स्टेबल जिसने अपनी ड्यूटी निभाई और एक घण्टे के भीतर छैल सिंह को गिरफ्तार किया उसे पब्लिक को खुश करने के लिए अकारण निलंबित कर दिया जाता है। कहीं कोई विरोध नही होता। सत्य,न्याय और राजपूतो के लिए कोई क्यों बोले ?

विधायक,मंत्री,मुख्यमंत्री, मीडिया,सामाजिक नेता,सेनाओं सबने घटना के बाद बिना जांच त्वरित टिप्पणियां की जिससे ही आज जालोर और राजस्थान बदनाम हुए, समाज का तानाबाना बिखरा। अब जाँच में जब मोटा मोटी सामने आ गया है कि इस घटना में जाति,छुआछूत या मटकी का कोई एंगल नही है तब क्या ये सब लोग अपने कृत्य के लिए सार्वजनिक माफी मांगेंगे ? इतनी नैतिकता है क्या सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वालो में ?

वोटों के लिए देश का माहौल बिगाड़ने वाले ध्यान से पढ़े कि वोट हमारे भी लगते है, देर से ही सही लोकतंत्र को अब हम भी समझ रहे है, प्रोपेगैंडा एजेंडा नैरेटिव सेट करना इस शब्दावली के अर्थ समझते है हम और एक समझदार वोटर के रूप में हम अपनी समझ को निरंतर बढ़ा ही रहे है।

इन तमाम विसंगतियों के बावजूद भी हम आपको विश्वास दिलाते है कि हम मन कर्म और वचन से अपने क्षात्र धर्म का पालन करने को कटिबद्ध है। किसी एक घटना,कुछ नेताओं,कुछ सेनाओं व कुछ अखबारों के आधार पर हम सर्वसमाज के प्रति नजरिया तय नही करते। जब जब जरूरत पड़ेगी यथाशक्ति हम आपके साथ खड़े नजर आएंगे। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि एक तू साथ रहना और हम अपने कर्तव्यपथ पर चलते रहे ऐसी शक्ति देना।

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